संस्कारी बहू से बिजनेस वुमन पल्लवी, मोटी रकम वाली आईटी की नौकरी छोड़ी, घुमक्कड़ी से मिले आइडियाज, किया साड़ियों का व्यापार
जब देहरादून से निकली थी तब सिर्फ पल्लवी रावत थी। जब दिल्ली में दाखिल हुई तो जुनियाली बाय पल्लवी बन गई। चाचा-चाची, दादी, मां-पिता के प्यार के बीच पली यह लड़की कभी शांत, सौम्य, संस्कारी होने की तारीफें बटोरती थी और अब आंत्रप्रेन्योर, मॉडल, डिजिटल क्रिएटर के तौर पर लोग जानते हैं। पल्लवी वुमन भास्कर से खास बातचीत में कहती हैं, 'बचपन से ही कला, संस्कृति को समझना अच्छा लगता। जब तीन साल की थी तभी से क्लासिकल डांस सीखना शुरू कर दिया। डांस मेरा पैशन था और कंप्यूटर पढ़ना मां-पिता की चॉइस।
पेरेंट्स ने शिक्षा के साथ दी हिम्मत
मैंने देहरादून से एमसीए किया। इसके बाद दिल्ली में पेटीएम में नौकरी मिल गई। पहली बार अपने शहर से बाहर निकली तो मन में तरह-तरह की शंकाएं भी थीं। लेकिन पेरेंट्स की सीख याद रही। लड़की हो इसलिए नौकरी जरूरी है। अपने पैरों पर खड़ा होना सीखो। भविष्य में किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े, इसलिए तुम्हारा इंडिपेंडेंट होना जरूरी है।
बाहर निकली तो घुमक्कड़ हो गई
बस इन्हीं विचारों को गुरुमंत्र मानकर चार साल मन लगाकर आईटी सेक्टर में काम किया। इस बीच जापान में भी काम करने का मौका मिला। इन चार सालों में मुझे घूमने का भी चस्का लग गया।
शादी के बाद मैं वापस देहरादून ससुराल आ गई। हस्बैंड नेवी में ऑफिसर हैं, तो वे अक्सर घर से बाहर रहते। शादी के बाद तीन साल मैंने फैमिली को दिए। हस्बैंड जहाज पर रहते, इसलिए मुझे उनके साथ यूके, इटली, स्पेन और टर्की घूमने का भी मौका मिला।
आने लगे एंग्जाइटी अटैक
नौकरी से तीन साल के ब्रेक के बाद मुझे एंग्जाइटी अटैक आने लगे, क्योंकि अब मन खाली होने लगा। कुछ नया करने को मांगने लगा। खुद से सवाल करने लगी कि क्या मैंने सारी पढ़ाई-लिखाई घर में बैठने के लिए की थी। क्या मेरी डिग्रियां और उपलब्धियां मसालों के डिब्बों में बंद होकर रह जाएंगी। आत्ममंथन के बाद हस्बैंड से बात की और मैंने वापस नौकरी करने की इच्छा जताई।
बस क्या था, बोरिया-बिस्तर उठाई और दिल्ली चली आई। यहां नोएडा की एक बड़ी आईटी कंपनी में काम किया, लेकिन अब मैं उतनी स्वतंत्र नहीं थी जितनी शादी से पहले थी। अब मुझे ससुराल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों बैलेंस करनी थीं। इस बीच मैंने फिर घूमने-फिरने का सिलसिला शुरू किया। जब भी मौका मिलता लेह, कोलकाता, कच्छ, भुज, वाराणसी और जयपुर घूम आती।
पल्लवी पहाड़ी संस्कृति और परंपरा को प्रमोट कर रही हैं और उन्हीं को अपने साड़ी के बिजनेस में इस्तेमाल किया है।
पल्लवी पहाड़ी संस्कृति और परंपरा को प्रमोट कर रही हैं और उन्हीं को अपने साड़ी के बिजनेस में इस्तेमाल किया है।
फिर शुरू किया अपना काम
इन शहरों में घूमने का फायदा यह हुआ कि मैं वहां के आर्ट वर्क को समझ पाई। मुझे साड़ी पहनने का बहुत शौक है। मैंने अलग-अलग शहरों में जाकर वहां के साड़ी मार्केट को देखा, आर्टिस्ट को देखा और उनकी मेहनत को समझा। तब सोचा कि क्यों न हैंडलूम का काम शुरू करूं।
मैंने अलग-अलग शहरों की महिला आर्टिस्ट को जोड़ना शुरू किया। इनसे हैंडलूम डिजाइन जैसे बनारसी साड़ी या दुपट्टे डिजाइन करवाने शुरू किए। हर शहर की अपनी खूबी है जैसे वाराणसी की बनारसी साड़ी, कोलकाता का कांथा हैंड एंब्रोइडरी फेमस है। मैंने हर शहर की खास चीज को अपने कपड़ों में इस्तेमाल किया और जुनियाली नाम से ऑनलाइन कपड़ों का बिजनेस पिछले साल शुरू किया। जूनियाली पहाड़ी शब्द है, इसे हिंदी में चांद की रोशनी कहते है।
पहाड़ी महिलाओं को भी जोड़ा
हैंडलूम पर काम करने का मन इसलिए भी था कि इससे आर्टिस्ट को काम मिलेगा और नेचर को भी पे-बैक कर पाऊंगी। पहाड़ी महिलाओं को भी जोड़ा और उन्हें साड़ी में फिनिशिंग, एंब्रॉइडरी, फॉल लगाने का काम देती हूं। इससे उनकी भी आमदनी हो जाती है।
पल्लवी के मुताबिक, उनकी कामयाबी में उनके पेरेंट्स के साथ-साथ हस्बैंड का बड़ा रोल रहा है।
पल्लवी के मुताबिक, उनकी कामयाबी में उनके पेरेंट्स के साथ-साथ हस्बैंड का बड़ा रोल रहा है।
बेटियों को पढ़ाएं और आत्मनिर्भर बनाएं
मुझे पेरेंट्स ने बचपन से खुद पर भरोसा करना सिखाया। किसी के आगे हाथ फैलाना नहीं। हर पेरेंट से गुजारिश करती हूं कि अपनी बेटियों को पढ़ाएं और उन्हें उनके पैरों पर खड़ा होने दें। उन्हें हमेशा किसी के अधीन न रखें। वे अपने बल पर सबकुछ कर सकती हैं, बशर्ते पेरेंट्स उनका साथ दें।
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